अतिरिक्त >> चट्टानों में आग चट्टानों में आगनीलाभ
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इमरान सीरीज़ का महत्त्वपूर्ण उपन्यास...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
दो शब्द
कहते हैं कि जिन दिनों अंग्रेज़ी के जासूसी उपन्यासों की जानी- मानी लेखिका अगाथा क्रिस्टी का डंका बज रहा था, किसी ने उनसे पूछा कि इतनी बड़ी तादाद में अपने उपन्यासों की बिक्री और अपार लोकप्रियता को देख कर उन्हें कैसा लगता है। अगाथा क्रिस्टी ने जवाब दिया कि इस मैदान में वे अकेली नहीं हैं, दूर हिन्दुस्तान में एक और उपन्यासकार है जो हरदिल-अज़ीज़ी और किताबों की बिक्री में उनसे उन्नीस नहीं है और यह उपन्यासकार है - इब्ने सफ़ी !
हम नहीं जानते कि यह वाक़या सच्चा है या फिर इब्ने सफ़ी के प्रेमियों ने उनके उपन्यासों और उनकी कल्पना की उड़ानों से प्रभावित हो कर गढ़ लिया है, मगर इससे इतना तो साफ़ है कि पिछली सदी के ५० और ७० के दशकों में इब्ने सफ़ी की शोहरत हिन्दुस्तान के बाहर भी फैल चुकी थी। उनके जासूसी उपन्यास उर्दू और हिन्दी में तो एक साथ प्रकाशित होते ही थे, बंगला, गुजराती और दीगर हिन्दुस्तानी ज़बानों में भी बड़े चाव से पड़े जाते थे। और आज साठ साल बाद भी उनकी लोकप्रियता में कमी नहीं आयी है।
इमरान सीरीज़ के पहले उपन्यास ‘ख़ौफ़नाक इमारत’ में इब्ने सफ़ी ने जो नया ढंग अपनाया था, उसे उन्होंने अपने अगले उपन्यास ‘चट्टानों में आग’ में बरक़रार रखा। ‘चट्टानों में आग’ का किस्सा एक ऐसे मिलिट्री अफ़सर के इर्द-गिर्द घूमता है जो दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नशीले पदार्थों की तस्करी करने वाले गिरोह का पता जान जाता है। ज़ाहिर है, ऐसे गिरोहों के दो ही उसूल होते हैं-या तो ऐसे आदमी को अपने गिरोह में शामिल कर लो या फिर उसे दूसरी दुनिया की तरफ़ रवाना कर दो। चूकि कर्नल ज़रग़ाम उस गिरोह में शामिल नहीं होता, इसलिए बरसों बाद उसे धमकियाँ मिलनी शुरू हो जाती हैं। वह जानता है कि जो धमकियाँ दे रहे हैं, वे किसी भी नीचता पर उतर सकते हैं। ऐसी हालत में वह परेशान हो कर कैप्टन फ़ैयाज़ को मदद के लिए लिखता है और फ़ैयाज़ इमरान को कर्नल ज़रग़ाम की मदद के लिए भेज देता है। कर्नल ज़रग़ाम के साथ उसकी बेटी सोफ़िया और दो भतीजे-आरिफ़ और अनवर-भी हैं जो इमरान को देख कर यह समझ नहीं पाते कि वह कैसे उनकी मदद करेगा, क्योंकि उसकी हरकतें हस्बामामूल बेवक़ूफ़ाना हैं। लेकिन आख़िर में असली मुजरिम इन्हीं बेवक़ूफ़ाना हरकतों के जाल में फँस जाते हैं और नशीली दवाइयाँ बेचने वाले एक गिरोह का पर्दाफ़ाश होता है।
इस उपन्यास की सबसे बडी खूबी यही है कि जगह-जगह इब्ने सफ़ी ने इमरान के माध्यम से बहुत दिलचस्प प्रसंग रचे हैं और उन्हें पढ़ते हुए पाठक बेसाख़्ता हँसने को मजबूर हो जाते हैं। एक छोटा-सा हिस्सा नमूने के तौर पर यहाँ पेश है-
पूरी ट्रेन से सिर्फ़ गईन आदमी उतर। दो बूढ़े देहाती और एक जवान आदमी जिसके जिस्म पर ख़ाकी गैबरडीन का सूट था। बायें कन्धे पर ग़िलाफ़ में बन्द की हुई बन्दूक़ लटक रही थी और दाहिने हाथ में एक बड़ा-सा सूटकेस था।
ज़्यादा मुमकिन यही था कि इसी आदमी के लिए अनवर और आरिफ़ यहाँ आये थे।
वे दोनों उसकी तरफ़ बढ़े।
‘क्या आप को कैप्टन फ़ैयाज़ ने भेजा है ?’ अनवर ने उससे पूछा।
‘अगर मैं ख़ुद ही न आना चाहता ने उसके फ़रिश्ते भी नहीं भेज सकते थे।’ मुसाफ़िर ने मुस्कुरा कर कहा।
‘जी हाँ ! ठीक है।’ अनवर जल्दी से बोला।
‘क्या ठीक है ?’ मुसाफ़िर पलकें झपकाने लगा।
अनवर बौखला गया। ‘वही जो आप कह रहे हैं।’
‘ओह !’ मुसाफ़िर ने इस तरह कहा जैसे वह पहले कुछ और समझा हो।
आरिफ़ और अनवर ने अर्थपूर्ण नजरों से एक-दूसरे को देखा।
‘हम आपको लेने के लिए आये हैं।? आरिफ़ ने कहा।
‘तो ले चलिये ना !’ मुसाफ़िर ने सूटकेस प्लेटफ़ार्म पर रख कर उस पर बैठते हुए कहा।
अनवर ने कुली को आवाज़ दी।
‘क्या’ मुसाफ़िर ने हैरत से कहा, ‘यह एक कुली मुझे सूटकेस समेत उठा सकेगा !’
पहले दोनों बौखलाये, फिर हसँने लगे।
यह था उपन्यास का एक छोटा-सा ट्रेलर। अब पन्ना पलटिए ओर पूरे क्रिस्से का मज़ा लीजिए। आशा है यह उपन्यास आपको पसन्द आयेगा।
हम नहीं जानते कि यह वाक़या सच्चा है या फिर इब्ने सफ़ी के प्रेमियों ने उनके उपन्यासों और उनकी कल्पना की उड़ानों से प्रभावित हो कर गढ़ लिया है, मगर इससे इतना तो साफ़ है कि पिछली सदी के ५० और ७० के दशकों में इब्ने सफ़ी की शोहरत हिन्दुस्तान के बाहर भी फैल चुकी थी। उनके जासूसी उपन्यास उर्दू और हिन्दी में तो एक साथ प्रकाशित होते ही थे, बंगला, गुजराती और दीगर हिन्दुस्तानी ज़बानों में भी बड़े चाव से पड़े जाते थे। और आज साठ साल बाद भी उनकी लोकप्रियता में कमी नहीं आयी है।
इमरान सीरीज़ के पहले उपन्यास ‘ख़ौफ़नाक इमारत’ में इब्ने सफ़ी ने जो नया ढंग अपनाया था, उसे उन्होंने अपने अगले उपन्यास ‘चट्टानों में आग’ में बरक़रार रखा। ‘चट्टानों में आग’ का किस्सा एक ऐसे मिलिट्री अफ़सर के इर्द-गिर्द घूमता है जो दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नशीले पदार्थों की तस्करी करने वाले गिरोह का पता जान जाता है। ज़ाहिर है, ऐसे गिरोहों के दो ही उसूल होते हैं-या तो ऐसे आदमी को अपने गिरोह में शामिल कर लो या फिर उसे दूसरी दुनिया की तरफ़ रवाना कर दो। चूकि कर्नल ज़रग़ाम उस गिरोह में शामिल नहीं होता, इसलिए बरसों बाद उसे धमकियाँ मिलनी शुरू हो जाती हैं। वह जानता है कि जो धमकियाँ दे रहे हैं, वे किसी भी नीचता पर उतर सकते हैं। ऐसी हालत में वह परेशान हो कर कैप्टन फ़ैयाज़ को मदद के लिए लिखता है और फ़ैयाज़ इमरान को कर्नल ज़रग़ाम की मदद के लिए भेज देता है। कर्नल ज़रग़ाम के साथ उसकी बेटी सोफ़िया और दो भतीजे-आरिफ़ और अनवर-भी हैं जो इमरान को देख कर यह समझ नहीं पाते कि वह कैसे उनकी मदद करेगा, क्योंकि उसकी हरकतें हस्बामामूल बेवक़ूफ़ाना हैं। लेकिन आख़िर में असली मुजरिम इन्हीं बेवक़ूफ़ाना हरकतों के जाल में फँस जाते हैं और नशीली दवाइयाँ बेचने वाले एक गिरोह का पर्दाफ़ाश होता है।
इस उपन्यास की सबसे बडी खूबी यही है कि जगह-जगह इब्ने सफ़ी ने इमरान के माध्यम से बहुत दिलचस्प प्रसंग रचे हैं और उन्हें पढ़ते हुए पाठक बेसाख़्ता हँसने को मजबूर हो जाते हैं। एक छोटा-सा हिस्सा नमूने के तौर पर यहाँ पेश है-
पूरी ट्रेन से सिर्फ़ गईन आदमी उतर। दो बूढ़े देहाती और एक जवान आदमी जिसके जिस्म पर ख़ाकी गैबरडीन का सूट था। बायें कन्धे पर ग़िलाफ़ में बन्द की हुई बन्दूक़ लटक रही थी और दाहिने हाथ में एक बड़ा-सा सूटकेस था।
ज़्यादा मुमकिन यही था कि इसी आदमी के लिए अनवर और आरिफ़ यहाँ आये थे।
वे दोनों उसकी तरफ़ बढ़े।
‘क्या आप को कैप्टन फ़ैयाज़ ने भेजा है ?’ अनवर ने उससे पूछा।
‘अगर मैं ख़ुद ही न आना चाहता ने उसके फ़रिश्ते भी नहीं भेज सकते थे।’ मुसाफ़िर ने मुस्कुरा कर कहा।
‘जी हाँ ! ठीक है।’ अनवर जल्दी से बोला।
‘क्या ठीक है ?’ मुसाफ़िर पलकें झपकाने लगा।
अनवर बौखला गया। ‘वही जो आप कह रहे हैं।’
‘ओह !’ मुसाफ़िर ने इस तरह कहा जैसे वह पहले कुछ और समझा हो।
आरिफ़ और अनवर ने अर्थपूर्ण नजरों से एक-दूसरे को देखा।
‘हम आपको लेने के लिए आये हैं।? आरिफ़ ने कहा।
‘तो ले चलिये ना !’ मुसाफ़िर ने सूटकेस प्लेटफ़ार्म पर रख कर उस पर बैठते हुए कहा।
अनवर ने कुली को आवाज़ दी।
‘क्या’ मुसाफ़िर ने हैरत से कहा, ‘यह एक कुली मुझे सूटकेस समेत उठा सकेगा !’
पहले दोनों बौखलाये, फिर हसँने लगे।
यह था उपन्यास का एक छोटा-सा ट्रेलर। अब पन्ना पलटिए ओर पूरे क्रिस्से का मज़ा लीजिए। आशा है यह उपन्यास आपको पसन्द आयेगा।
- नीलाभ
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